Description
आत्मकथात्मक शैली में रचित एवं चार भागों में विभक्त ‘श्रीकान्त’ शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय का रोचक, पठनीय एवं संग्रहणीय उपन्यास है, जो पुरुष प्रधान होते हुए भी नारी संवेदना का संवाहक है। इसके नायक श्रीकांत बचपन से ही धुन के धनी और मस्तमौला थे। किसी के साथ या एक ही जगह लंबे समय तक रहना उन की प्रकृति के विरुद्ध था। समाज में उन्हें कोई अपना कहने वाला था, तो केवल उनकी बचपन की सहपाठिन राजलक्ष्मी, जिसने नौ साल की उम्र में ही चैदह साल के किशोर श्रीकांत को करौंदों की माला पहनाकर अपना बनाना चाहा था। फिर भी क्या वह श्रीकांत को अपना बना सकी? यही इस उपन्यास का कथ्य है|
आत्मकथात्मक शैली में रचित एवं चार भागों में विभक्त ‘श्रीकान्त’ शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय का रोचक, पठनीय एवं संग्रहणीय उपन्यास है, जो पुरुष प्रधान होते हुए भी नारी संवेदना का संवाहक है। इसके नायक श्रीकांत बचपन से ही धुन के धनी और मस्तमौला थे। किसी के साथ या एक ही जगह लंबे समय तक रहना उन की प्रकृति के विरुद्ध था। समाज में उन्हें कोई अपना कहने वाला था, तो केवल उनकी बचपन की सहपाठिन राजलक्ष्मी, जिसने नौ साल की उम्र में ही चैदह साल के किशोर श्रीकांत को करौंदों की माला पहनाकर अपना बनाना चाहा था। फिर भी क्या वह श्रीकांत... Read More